मां,  एक पहेली!

**यह एक ऐसी बच्ची की कहानी है जो एक अनाथाश्रम में रहती है। उसने अपनी मां को कभी नहीं देखा। बरसों से वह अपनी मां को देखने का,  उनसे मिलने का इंतजार कर रही है। वह उनकी कल्पना कर एक चित्र बनाती है और उससे बातें  करती है।
इस कविता की शुरुआत में वह अपनी मां पर गुस्सा करती है,  फिर उसे यह सोचकर तरस आता है कि उनकी कोई मजबूरी होगी। अंत में वह अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने और आगे बढ़ने का वादा करती है।**

मां,  एक पहेली!

क्यूँ मुझे छोड़ कर चली गई तुम,
इसका कारण तो मैं जानती नहीं।
कहते हैं लोग कि ‘अनाथ हो तुम ‘,
लेकिन इस बात को मैं मानती नहीं।

ऐसे ही क्यूँ चली गई मां?
क्यूँ नहीं रखा मुझे अपने करीब?
हो सकता है तुम्हारी कोई मजबूरी हो,
पर क्या यही है अब मेरा नसीब?

मां मैं हमेशा सोचा करती थी,
तुम होती तो ऐसा होता,
तुम होती तो वैसा होता।

मां तुम सामने क्यूँ नहीं आती?
अपना चेहरा क्यूँ नहीं दिखाती?
बाहें फैलाए खड़ी हूँ मैं,
मुझे गले से क्यूँ नहीं लगाती?

अकेले बैठी रोती हूं मैं मां,
तुम्हारे इंतजार में जीती हूँ मैं मां।

कि एक दिन तुम आओगी,
अपने हाथों से खाना खिलाओगी।
मेरे बालों को प्यार से सहलाओगी,
मुझे मीठी लोरियाँ गाकर सुलाओगी।

पर तुम तो कभी आती ही नहीं,
अपने फर्ज़ तुम निभाती ही नहीं।
जब तुम्हारे साथ के लिए तडपती हूँ मैं,
हाथ मेरा तुम थामती ही नहीं,
शायद प्यार भी मुझसे तुम करती नहीं।

आखिर मेरी गलती क्या थी?
क्यूँ तुमने मुझे ऐसी सज़ा दी?
मुझे ताने मारने के लिए तुमने,
क्यूँ ज़माने को ये वजह दी?

मैं क्यूँ सुनूं सबके ताने?
तुम ही नहीं आई मुझे अपनाने।
एक बार आकर कह देती ना,
कि तुम चाहे जहाँ हो,
तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी मां हो।

जब संभालना ही नहीं था,
तो मुझे जन्म ही क्यूँ दिया?
हरदम सताती है तुम्हारी याद मुझे,
पर तुमने तो कभी मुझे याद ही नहीं किया!

याद अगर तुम करती मुझे,
अब तक मिलने आ जाती।
एक बार मुझे गले लगाकर,
अपनी मजबूरियाँ समझा जाती।

कभी कभी तो नफ़रत होती है तुमसे,
क्यूँ हो गई तुम इतनी खुदगर्ज़?
मुझे बेसहारा छोड़ गई यहाँ,
क्यूँ नहीं निभाए अपने फर्ज़?

शायद तुम इस दुनिया में हो ही नहीं,
होती तो मुझे अकेला ना छोड़ देती।
कोई भी मां इतनी निर्दयी नहीं होती,
कि अपने बच्चे से ही मुंह मोड़ लेती।

इस तस्वीर में ही बसी अब तुम्हारी यादें हैं,
क्यूँकि अब मेरे कुछ अलग इरादे हैं।
इन झूठी उम्मीदों से मुझे उबरना होगा,
सच का सामना तो अब मुझे करना होगा।

पता नहीं तुम सुन भी रही हो या नहीं,
पर आज तुमसे एक वादा करती हूँ।

मेरे जीवन को तुमने जो शुरुआत दी है,
उसे तो मैं कभी बदल नहीं पाउंगी।
पर तुम इतना ज़रूर याद रखना मां,
अपनी किस्मत को मैं ज़रूर बदल के दिखाऊंगी।
अपनी किस्मत को मैं ज़रूर बदल के दिखाऊंगी।

**Written on 18/08/14**

36 thoughts on “मां,  एक पहेली!

  1. Oh my… Very well written Chandni.. Almost rona aagaya.. Not kidding.. I feel sad that such children exists in real. I like the way you induced the feelings in this post. There are some lines, which I liked, ‘Baahein faila kar khadi hu, gale se kyun nahi lagati..’ And that one at the last, ‘apni kismat KO jaroor badal ke dikhaungi’.. Very well written.. Keep writing.. Have a good time.. Hindi poems always make me involved into them..

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    1. Yeah, even I feel bad for such kids. And, Thankyou soo very much! Hehe, even maine ghar par sunaayi ye wali poem toh sab rone lage! 😂😂
      But, I have stopped writing in hindi actually. I wrote this last year. 😅

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    2. Haa… I saw that.. August 2014.. Parivar waale khush hue hinge ki tumne itni achi kavita likhi.. Even I wrote some Hindi poems but never posted them.. Hehe.. Good work.. Have a good time.. :) I mean, good sleep.. Its all most 12..

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  2. This poem is actual feeling of a son/daughter who is living without mom.

    Jb mein yeh padh rha tha mujhe meri <3 MAA <3 ki yaad aa gyi, vaise to wo kbhi ankho ke aage se jaati nahi…par iss wqt ashko mein bhi nazar aa gyi.

    meine bhi kuch likhne ki koshish ki thi apne blog pe jb meri last shaam thi mom ke saath…. title hai

    " Wo shaam"

    https://shanejeetwordpress.wordpress.com/2015/12/21/wo-shaam/

    ap jaisa to nhi sister, par bs ek note ke roop mein likhne ka try kiya hai.

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